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BJYM के कार्यक्रम में बोले विदेश मंत्री Jaishankar- संविधान की प्रति हाथ में लेकर चलने वालों से सावधान, किस्सा कुर्सी का बहुत महंगा पड़ता है


आपातकाल के काले अध्याय के 50 साल पूरे होने के मौके पर दिल्ली भाजपा युवा मोर्चा द्वारा आज एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में कांग्रेस द्वारा लगाये गए मॉक पार्लियामेंट का आयोजन किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में विदेश मंत्री डॉक्टर एस जयशंकर और दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने दीप प्रज्वलित कर इसकी शुरुआत की। मॉक पार्लियामेंट्र में विभिन्न कॉलेजों के युवा छात्रों ने भाग लिया। अपने सम्बोधन से पूर्व डॉ. एस जयशंकर और वीरेन्द्र सचदेवा ने आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर लगाई गयी विशेष प्रदर्शनी का अवलोकन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत में दिल्ली भाजपा युवा मोर्चा अध्यक्ष सागर त्यागी ने स्वागत भाषण में कांग्रेस के आपातकाल को याद किया और कहा कि यह भारत के इतिहास में एक काला अध्याय है। वहीं दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज अगर मॉक पार्लियामेंट का आयोजन किया गया है तो उसका एक कारण यह है कि युवा पीढ़ी को इस बात की जानकारी हो कि आखिर अपनी कुर्सी और सत्ता बचाने के किए कांग्रेस सरकार द्वारा कैसे संविधान का गला घोंटा गया और कैसे कलम की ताकत पर रोक लगाई गई इस बात की जानकारी आज की युवा पीढ़ी को भी होनी चाहिए। वीरेन्द्र सचदेवा ने कहा कि उस वक्त सिर्फ सत्ता के लालच में किसी का हाथ काट दिया गया था तो किसी को जान से मार दिया गया। इसलिए आज की पीढ़ी को समझना पड़ेगा कि आखिर इमरजेंसी क्या है। उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में विश्व ने भारत की जो ताकत देखी है उसके एक सूत्रधार हमारे बीच डॉ एस. जयशंकर जी बैठे हुए हैं। उन्होंने कहा कि एस.सी.ओ. की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी ने जब हस्ताक्षर करने से मना कर दिया तो उस वक्त विश्व ने भारत की ताकत देखी। 

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सचदेवा ने खासकर युवाओं से जो मॉक पार्लियामेंट में भाग ले रहे थे उनसे एक विशेष अपील करते हुए कहा कि युवा आज कल मोबाइल के नशे में डूबा हुआ है लेकिन अगर वही नशा देश के प्रति हो तो यह देश बिल्कुल सुरक्षित हाथों में होगा। इसलिए कोशिश कीजिए कि देश के लिए अपने अंदर राष्ट्रसेवा की भावना लाएं।
वहीं विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने कहा कि विपक्ष बार-बार कहता है कि अघोषित इमरजेंसी है लेकिन मैं आप सभी के माध्यम से बताना चाहूंगा कि यह इमरजेंसी का समय नहीं है और ना ही आगे होगा इसलिए आज यहां मॉक पार्लियामेंट में हम सबकी उपस्थिति है। उन्होंने कहा कि हमारी पीढ़ी ने उस इमरजेंसी को देखा और जो भी हमने उस समय सीखा उस अनुभव को आगे आने वाली पीढ़ियों को बताना हमारा कर्तव्य है। डा. जयशंकर ने कहा की कुछ लोग संविधान की प्रति हाथ में लेकर घूमते हैं पर दिल की भावना कुछ और है, क्या कभी कांग्रेस ने आपातकाल के लिए माफी मांगी ? विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साथ ही आपातकाल से जुड़े कई ऐसे घटनाक्रम बताये जोकि लोगों को हतप्रभ कर गये।
उन्होंने कहा कि कभी भी आपातकाल कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं रहा बल्कि यह हमारे जीवन के रहन सहन पर अटैक था और यह सिर्फ एक परिवार के कारण हुआ। डॉ. एस. जयशंकर ने कहा कि देश में आपातकाल लगाने का सिर्फ एक कारण था जो बाहर लगे पोस्टर पर भी साफ लिखा हुआ है- किस्सा कुर्सी का। उन्होंने कहा कि उस वक्त लोगों के अंदर डर बैठाने का काम पुलिस द्वारा रात को अटैक करवा कर किया जाता था चाहे वह यूनिवर्सिटी का हॉस्टल हो या फिर चौराहे की दुकान। उन्होंने कहा कि यह सारा एक्सरसाइज सिर्फ लोगों के ज़मीर मॉरल को तोड़ना और एक डर पैदा करना था। इमरजेंसी में जो लोग अरेस्ट होते थे उन्हें ख़ुद नहीं पता होता था कि वह कब बाहर आयेंगे।
विदेश मंत्री ने कहा कि 1971 में जीतने के बाद सरकार की लोकप्रियता काफ़ी घट गई थी क्योंकि भ्रष्टाचार अपने चरम पर था और गुजरात में सरकार गिर गई थी। इसलिए सरकार ने नया तरीका निकाला कि कैसे सरकार के प्रति लोगों में डर पैदा की जाए इसलिए उन्होंने देश में इमरजेंसी लगा दी। उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के कई सालों बाद आज भी कांग्रेस से पूछा गया कि देश में जो इमरजेंसी लगी क्या उसके लिए आप रिग्रेट हैं तो उसमें से आज भी किसी को उसका कोई रिग्रेट नहीं है। जिन दो सालों में इमरजेंसी लगाई थी उन सिर्फ दो सालों में संविधान में पांच संशोधन और 48 ऑर्डिनेंसेस पास किए गए थे। उन्होंने कहा कि इनमें से तीन बदलाव बहुत महत्वपूर्ण थे। 38वां संशोधन के अनुसार आप इमरजेंसी लगाने के संबंध में कोर्ट नहीं जा सकते, 39वां संशोधन आपको प्रधानमंत्री के चुनाव पर कोर्ट जाने से रोक रहा था और 42वां संशोधन के अनुसार आपके मौलिक अधिकार को ही खत्म करके कोर्ट के पावर को कम करने वाला था। इमरजेंसी में संविधान की हत्या इस तरह से की गई कि अगर आपकी जान भी जाए तो कोर्ट आपको राहत नहीं दे सकता। 
उन्होंने कहा कि इमरजेसीं के वक्त श्रीलंका के साथ एक समझौता किया गया था जिसके बाद हमने श्रीलंका में मछली पकड़ने का हक खो दिया था और यही कारण है कि आज भी श्रीलंका में मछुआरे मछली पकड़ने जाते हैं तो उन्हें पकड़ लिया जाता है। इसलिए छह बिंदुओं पर हमे जरूर ध्यान देने की जरूरत है —
पहला, जिस डेमोक्रेटिक तरीके से हमने उस वक्त विरोध किया और हमने फोर्स किया कि हम चुनाव करवाये। ऐसे में डेमेक्रेसी हमारे डी.एन.ए. में है क्योंकि इलेक्शन होने का कारण था कि देश इमरजेंसी को नहीं मान रही है। 
दूसरा, इमरजेंसी जैसी स्थिति तब होती है जब फैमिली देश के आगे होता है और उस वक्त नारा था इंद्रा इज इण्डिया एंड इण्डिया इज इंद्रा। जब पारिवारिक डेमोक्रेसी होती है तो देश का नुकसान होता है जैसे इमरजेंसी के वक्त देश को हुआ था।   
तीसरा- जब हमारे ही लोग विदेश में जाकर हमारे ही देश के संविधान देश की बुराई करते हैं वह सबसे खतरनाक है और ऐसा लोगों से हमें बचाकर रहना चाहिए। 
चौथा- अपने लोगों को इम्पावर करने की जरूरत है क्योंकि जितने लोग इम्पॉयर होंगे वह इमरजेंसी जैसी स्थिति नहीं होने देंगे।  
पांचवां- लोगों के अंदर राष्ट्र भावना का सम्मान होना चाहिए और ऑपरेशन सिंदूर के बाद हर पार्टी के लोगों ने विदेश जाकर भारत की बातें रखीं यह हमारे लिए गर्व की बात है।  
छठवां- जो भी घटनाएं 50 साल पहले हुईं उसको इतिहास के रूप में ना देखें बल्कि यह कई लोगो के अंदर आज भी है। इसलिए उन लोगों से सावधान रहें जिन्हें आज भी इमरजेंसी पर कोई रिग्रेट नहीं है।



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